डॉ० रेकवेग आर 17, गांठो (Tumour) कैं लिए सुरक्षित एवं नैसर्गिक उपाय
मूल-तत्व: नाजा ट्राइपूडियन्स D6, रक्रोफुलेरियक्च नोड D2, ऐसिड लेक्टिकम D4.
लक्षण: सभी प्रकार की गांठो या रसौली, घातक कैंसरमय व साध्य
रसौली। रुग्ण ऊतकों को पुन जीवित करने वल्ला (तपेदिक
सम्बन्धी वा)।
बाहा एबं आंतरिक अंगों को प्रभावित करती उत्पत्तियॉ (growth)
तथा एक्जिमा। ज्वलनशील तथा उष्ण दाने। विषम उपकलापरक
उत्पत्तिर्यों (anomalous epithelail growths), परत तथा मस्से
बनना।
क्रिया विधि: नाजा ट्राइ : रुग्ण ऊतकों का पुनर्जीवक, कैंसर जनक संव द्धियों
को दबाता है, शरीर की जैविक सुरक्षात्मक शक्तियों को बढ़ाता है। व्रण तभी
खुरण्ड के कारण आई त्वचा की सूजन, धीरे-धीरे पीब बनना, पीब का पतला होना तथा कम मात्रा में बनना ।
सीरमी त्वचा, मांसपेशियों तथा श्लेष्मिक झिल्लियों के रोग । व्रण
में आसपास की त्वचा सूज जाती है, साथ ही धीरे-धीरे पस
बनता है ।
स्करैंफुलेरिया: कैंसरमय व्रण, ग्रंथियों में कैंसर प्रक ति की सूजन, रुग्ण ऊतकों का
पुनर्जीवक । वक्ष में होने वाली घातक तथा साध्य गाँठों की उत्पत्ति
जो धीरे-धीरे व्रण में विकसित हो जाये। कैंसर की प्रव ति वाले
उदर-व्रण। पेशी तत्व से निर्मित (myomae), गर्भाशय का कैंसरमय,
उपकलापरक तभी कठोर ग्रंथि वाला व्रण।
खुराक की मात्रा: सामान्यत: प्रतिदिन तीन बार भोजन से पूर्व थोडे पानी में
10-15 बूँदें। यदि कैंसएं (malignanacy)')का संदेह हो, तो प्रतिदिन
चार बार थोडे पानी में 20 बूँदें लें। सुधार शुरू होने पर ही धीरे-
धीरे खुराक कम करें और कई महीनों तक उपचार जारी रखें ।
टिप्पणी: कैंसर के उपचार में इस औषधि को पूरक औषधि के रूप में माना
जा सकता है । बेहतर होगा, कि आँपरेशन के बाद अथवा विकिरण
केवल पंजीकृत चिकित्सकों के लिए
उपचार के बाद R1 7 का प्रयोग करें, क्योकि ऐसा पाया गया है
जि इसके सेवन से रोगी की हालत में सर्वांगिण सुधार होता है ।
केंसर के अंतिम चरणों में होने वाले तीव्र दर्द में R17 के प्रयोग
से लगातार आराम मिलता है ।
स्त्री-गोणिक अंगों सम्बन्धी रूग्णता में : R38 (दाहिनी ओर)
अथवा R39 (बायीं ओर) का प्रयोग करें ।
अल्परक्तता में : अतिरिक्त औषधि के रूप में R31का भी प्रयोग
करें ।
प्रोस्टेट सम्बन्धी रोगों में : R25 देखें ।
यक त (हिम्भ) की क्रिया बढाने के लिए : प्रतिदिन एक बार
10-15 बूंदे R17 भी लें ।