डॉ० रेकवेग R88 होम्योपैथिक बूँदें - Anti-Viral drops
R88- विषाणु नाशक ड्रॉप्स << ऑनलाइन आर्डर करें
मूल-तत्व : कैरियोफाइलस एरोमेटिंकम D3, कोक्साकी D30, D60, D200,
डिफटैरिनम D30, D60, D200, एप्सटीन बार D30, D60, D200,
यूफ्रेशिया D5, हर्पीज सिम्पलेक्स D30, D60, D200, हर्पीज जोस्टर
D30, D60, D200, इपलुएंसिनम D30, D60, D200,
मो नां नुक्लिओसिस D30, D60, D200, मी रबिलिनम
D30,D60,D200, पोलियो मायलिटिस D30, D60, D200, वि-ग्रिपे
D30, D60, D200 ।
लक्षण: कोई भी विषाणु सम्बन्धी रोग, जैसे खसरा, डेंगू मोनोन्यूक्लिओसिस (mononucleosis), हर्पीज, फलू आदि रोगों में ।
क्रिया विधि: कोक्साकीं (coxsackie), डिफटैरिनम, एप्सटीन बार (epstein)
हर्पीज सिम्प्लेक्स , हर्पीज जोस्टर , इंपलुएसिनम, मोनोन्यूक्लिओसिस ,
मोरबिलिनम, पोलियोमायलिटिस , वीं-ग्रिपे :
उपर्युक्त मूल-तत्व अत्यधिक घुलनशील होते हैं, जिससे कोई
भी विषाणु उत्पाद में नहीं रह जाते, परन्तु विषाणुओं की शक्ति
आक्रामकों के विरुद्ध रक्षा करने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता
को बढाती है । या विषाणुओं के विरुद्ध प्राकृतिक सुरक्षा को
रक्षात्मक ढंग से (बिना कुप्रभाव के ) बढाने के लिए एक सुरक्षित
टीकाकरण या रोगक्षमीकरण फॉर्मूला (एम्यूनाइजेशन) बन जाता है ।
कैरिंयोपइपंइलस एरोमेटिक्स : प्रकृतिक वायरस नाशक (anti viral)
यूफ्रेशिया : रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाने वाली औषधि (immuno stimulant)
खुराक की मात्रा : प्राकृतिक टीकाकरण के फार्मूले के रूप में, यह विषाणु रोधी
फार्मूला बच्चे के लिए सुरक्षित है, तथा तीन दिन तक दिन में
तीन बार 3 बूंदे देना चाहिए, दो वर्ष की आयु तक प्रत्येक माह ।
यह फार्मूला नाभि में लगा कर स्वयं बच्चे के हाथ से मलवा
सकते हैं । बडे बच्चों या वयस्कों के लिए प्रयोग करने के लिए प्रतिदिन 3 बार 10 बूंदे वायरल रोग दूर करने कं लिए अथवा
दिन में एक बार 10 बूंदे रोग-आधिक के रूप में प्रयोग करें ।
टिप्पणी: इंफ्लुएंजा में R6, बुखार तो लिए R1 हैं, चिकन पॉक्स में R68,
हर्पीज जोस्टर (Herpes zoster) में R68, R30, खसरे में R62,
कनफेड़ों (mumps) में R1, R26, खाँसी में R8, R9 ।
रोगी को मांसाहार से दूर रखें और विटामिन-सी का प्रयोग और
जरूरी फैटी एसिड (fatty acids) का प्रयोग बढाये ।
संक्रमण से लेकर रोग-लक्षण प्रकट होने तक की अवधि
फंगल-संक्रमाग में R82
रोगाणु संक्रमण में R87
तनाव की स्थिति होने पर वीटा-की फोर्ट ।
रोग कं कारणों का इतिहास : विषाणुओं का संपर्क होने पर
अंतः संचरण आरंभ होता है, जिसके उपरांत रोग होता है।संक्रमण से लेकर रोग-लक्षण प्रकट होने तक की अवधि के "
दौरान रोग-प्रतिरोधक क्षमता की स्थिति वायरल रोग के जीवन
की तीव्रता तथा अवधि निर्धारित करती है । वायरस से संपर्क
बचाना महत्वपूर्ण होता है, किन्तु इससे भी महत्वपूर्ण होता है रोग
प्रतिरोधक क्षमता को सशक्त बनाना, जो विषाणु को बिना
कोशिकाओं में रोग पहुंचाये कार्य करने देती है । वायरस RNA
या DNA के आधुनिक स्वरूप हैं जो जैविक शरीर से संदेश ले
जाते हैं । प्रकृति में विषाणुओं को जीवाणुओं तथा कवकों के द्वारा
नियंत्रित ररवा जाता है । सूक्ष्म जीवों का यह त्रिकोण एक
आवश्यक संतुलन प्रदान करता है, जिससे इनमें से कोई भी
अधिक प्रभावशाली न बन सके ।
अतिरिक्त एंटीबायोटिक्स इस संतुलन को बिगाड़ देते हैं तथा
वायरस तथा फंगल में व द्धि हो जाती है ।
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